"माँ", मेरा बोला पहला हो तुम
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"माँ", मेरा बोला पहला हो तुम -
दिल से निकले शब्दों में
"माँ" सिर्फ एक किताब नहीं, एक एहसास है — एक श्रद्धांजलि उस ममता, शक्ति और प्यार को, जो हमें गहराई से छूते हैं।
इस काव्य-संग्रह में मैंने और मेरी बेटी ने मिलकर दो पीढ़ियों की भावनाओं को शब्दों में ढालने की कोशिश की है — सरल, सच्ची और सहज भाषा में।
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सादा लेकिन असरदार भाषा
इन कविताओं की भाषा वही है जो हम रोज़मर्रा में बोलते हैं — एक खूबसूरत मिश्रण है हिंदी, अंग्रेज़ी, उर्दू और फ़ारसी के शब्दों का, जो बात को दिल से कहने में मदद करते हैं।

भावनाओं का रंगमंच — कभी मुस्कुराहट, कभी प्रेरणा
इसमें आपको मिलेंगी कुछ कविताएँ जो दिल से हँसाती हैं, कुछ जो प्रेरित करती हैं, और कुछ जो चुपचाप आपको सोचने पर मजबूर कर देती हैं।

पिता-बेटी की साझा आवाज़
यह संग्रह एक अनोखा संवाद है — दो पीढ़ियाँ, दो नजरिए, पर भावनाएँ एक जैसी। ज़िंदगी के कई रंग इन पन्नों पर मिलते हैं — माँ-बच्चे का रिश्ता, दोस्ती, प्रेम, संघर्ष और आत्मबोध।

सांस्कृतिक स्पर्श
भारतीय संस्कृति, सिनेमा, त्योहार, खाना, और हमारा सामाजिक व्यवहार — ये सब इस संग्रह में झलकते हैं, जो इसे साहित्यिक ही नहीं, दिल से जुड़ा हुआ अनुभव बनाते हैं।

हर कविता — एक अनुभूति, एक कहानी
चाहे वो नौकरी की उलझन हो या माँ की गोद की शांति, हर कविता किसी न किसी जानी-पहचानी भावना से जुड़ी है। ये शब्द बस पढ़े नहीं जाते, महसूस किए जाते हैं।

"माँ"
आपको न सिर्फ़ एक साहित्यिक अनुभव देती है, बल्कि अपने रिश्तों और जीवन को नई नजर से देखने की प्रेरणा भी देती है।
तो आइए, इस भावनात्मक यात्रा पर हमारे साथ चलिए — जहाँ हर कविता आपको थोड़ा और ‘आप’ से मिलवाएगी।